निरखी निरखी मनहर मूरत तोरी हो जिनन्दा,
खोई खोई आतम निधि निज पाई हो जिनन्दा ।।
ना समझी से अबलो मैंने पर को अपना मान के।
माया की ममता में डोला, तुमको नहीं पिछान के।
अब भूलों पर रोता यह मन, मोरा हो जिनन्दा ।।(1)
भोग रोग का घर है मैंने, आज चराचर देखा है।
आतम धन के आगे जग का झूँठा सारा लेखा है।
अपने में घुल मिल जाऊँ, वर पावूँ जिनन्दा ।।(2)
तू भवनाशी मैं भववासी, भव से पार उतरना है।
शुद्ध स्वरूपी होकर तुमसा, शिवरमणी को वरना है।
ज्ञानज्योति `सौभाग्य’ जगे घट, मोरे हो जिनन्दा ।।(3)
Artist- श्री सौभाग्य जी | Shri Sobhagya Ji
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