प्रभो आपने एक ज्ञायक बताया। || Prabhu aap ne ek gyak bataya

 (छन्द-चामर)

प्रभो आपने एक ज्ञायक बताया।

तिहूँ लोक में नाथ अनुपम जताया ।।

यही रूप मेरा मुझे आज भाया ।

महानंद मैंने स्वयं में ही पाया ।।

भव-भव भटकते बहुत काल बीता।

रहा आज तक मोह-मदिरा ही पीता ।।

फिरा ढूँढता सुख विषयों के माहीं ।

मिली किन्तु उनमें असह्य वेदना ही ||

महाभाग्य से आपको देव पाया।

तिहूलोक में नाथ अनुपम जताया ।।(1)

कहाँ तक कहूँनाथ महिमा तुम्हारी ।

निधि आत्मा की सु दिखलाई भारी ।।

निधि प्राप्ति की प्रभु सहज विधि बताई।

अनादि की पामरता बुद्धि पलाई ।।

परमभाव मुझको सहज ही दिखाया।

तिहूँलोक में नाथ अनुपम जताया ।।(2)

विस्मय से प्रभुवर भी तुमको निरखता ।

महामूढ दुखिया स्वयं को समझता ||

स्वयं ही प्रभु हूँ दिखे आज मुझको ।

महा हर्ष मानों मिला मोक्ष ही हो।।

मैं चिन्मात्र ज्ञायक हूँ अनुभव में आया।

तिहूँलोक में नाथ अनुपम जताया ।।(3)

अस्थिरता जन्य प्रभो दोष भारी।

खटकती है रागादि परिणति विकारी ।।

विश्वास है शीघ्र ये भी मिटेगी ।

स्वभाव के सन्मुख यह कैसे टिकेगी |

नित्य-निरंजन का अवलम्ब पाया ।

तिहूँलोक में नाथ अनुपम जताया ।।(4)

दृष्टि हुई आप सम ही प्रभो जब ।

परिणति भी होगी तुम्हारे ही सम तब ||

नहीं मुझको चिंता मैं निर्दोंष ज्ञायक ।

नहीं पर से सम्बन्थ मैं ही ज्ञेय ज्ञायक ।।

हुआ दुर्विकल्पो का जिनवर सफाया ।

तिहूँलोक में नाथ अनुपम जताया ।।(5)

सर्वांग सुखमय स्वयं सिद्ध निर्मल ।

शक्ति अनन्तमयी एक अविचल ||

बिन्मूर्ति चिन्मूर्ति भगवान आत्मा ।

तिहूँजग में नमनीय शाश्वत चिदात्मा ।।

हो अद्वैत वन्दन प्रभो हर्ष छाया ।

तिहूँलोक में नाथ अनुपम जताया ।।(6)

ॐ ह्रीं श्री वीतराग देवाय: अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

(दोहा)

आपही ज्ञायक देव हैं, आप आपका ज्ञेय |

अखिल विश्व में आपही, ध्येय ज्ञेय श्रदेय ।।



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