जिनवर की वाणी से, हमने ये जाना।
सबसे सरल है निजपद पाना॥ टेक॥
सबसे सरल है निजपद पाना॥ टेक॥
सोये थे आनादि से हम, मोह की गहल में,
वीर की वाणी से आये, चेतना महल में।
आज समझ में आया ओ ऽऽ, आज समझ में आया जग है बेगाना, निज पद पाना॥(1)
वीर की वाणी से आये, चेतना महल में।
आज समझ में आया ओ ऽऽ, आज समझ में आया जग है बेगाना, निज पद पाना॥(1)
अपनी निधि को भूला दुःखी संसारी,
प्रभु से पदार्थ माँगे, भक्त बन भिखारी।
भोगों के भगत तेरा ओ ऽऽ, भोगों के भुगत तेरा कैसे होगा जाना, निज पद पाना॥(2)
प्रभु से पदार्थ माँगे, भक्त बन भिखारी।
भोगों के भगत तेरा ओ ऽऽ, भोगों के भुगत तेरा कैसे होगा जाना, निज पद पाना॥(2)
गुरु ने बताया मारग सीधा और सपाट रे,
तेरी उपयोग परिणति खा जावे कुलाटरे।
इसी रास्ते से होगा ओऽऽ, इसी रास्ते से होगा शिवपुर जाना, निज पद पाना॥(3)
तेरी उपयोग परिणति खा जावे कुलाटरे।
इसी रास्ते से होगा ओऽऽ, इसी रास्ते से होगा शिवपुर जाना, निज पद पाना॥(3)
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