सन्त साधु बनके विचरूं वह घड़ी कब आयेगी - Jain Bhajan

सन्त साधु बनके विचरूं वह घड़ी कब आयेगी। 
चल पडूँ मैं मोक्ष पथ में, वह घड़ी कब आयेगी।।

आयेगा वैराग्य मुझको, इस दु:खी संसार से। 
त्याग दूँगा मोह ममता, वह घड़ी कब आयेगी॥(1)

हाथ में पीछी कमण्डल, ध्यान आतम राम का। 
छोड़कर घरबार दीक्षा की घड़ी कब आयेगी॥(2)

पाँच समिति तीन गुप्ति, बाईस परिषह भी सहूँ। 
भावना बारह जु भाऊँ, वह घड़ी कब आयेगी॥(3)

बाह्य उपाधि त्याग कर निज तत्त्व का चिन्तन करुँ। 

निर्विकल्प होवे समाधि वह घड़ी कब आयेगी॥(4)

भव-भ्रमण का नाश होवे इस दु:खी संसार से। 
विचरूं मैं निज आत्मा में, वह घड़ी कब आयेगी॥(5)



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