आचार्य कुंदकुंद जो भारत में न आते
अध्यात्म समयसार कहो कौन सुनाते-२।।टेक।।
रच करके कौन देता आत्म ख्याति समयसार
ऐसे अनेक ग्रंथ भेद ज्ञान के भंडार
उनके बिना हृदय में शाति कौन दिलाते।।१।।
जलती कषाय अग्नि सहज भाव जलाती
कर्मों के महाबंध को आत्मा से कराती
शांति का सहज प्याला कहो कौन पिलाते।।२।।
सम्यक्त्व बिना मोह ने भववन में घुमाया
सम्यक्त्व बिना आत्मा को उसने रुलाया।
सम्यक्त्व आत्मा की निधि कौन बताते ।।३।।
है जगत के संबंध कोई पार न पाया
है सब अनित्य, नित्य एक भी नहीं पाया
होता न सगा आप जिसे अपना बनाते ।।४।
अध्यात्म समयसार कहो कौन सुनाते-२।।टेक।।
रच करके कौन देता आत्म ख्याति समयसार
ऐसे अनेक ग्रंथ भेद ज्ञान के भंडार
उनके बिना हृदय में शाति कौन दिलाते।।१।।
जलती कषाय अग्नि सहज भाव जलाती
कर्मों के महाबंध को आत्मा से कराती
शांति का सहज प्याला कहो कौन पिलाते।।२।।
सम्यक्त्व बिना मोह ने भववन में घुमाया
सम्यक्त्व बिना आत्मा को उसने रुलाया।
सम्यक्त्व आत्मा की निधि कौन बताते ।।३।।
है जगत के संबंध कोई पार न पाया
है सब अनित्य, नित्य एक भी नहीं पाया
होता न सगा आप जिसे अपना बनाते ।।४।
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