कैसी सुन्दर जिन प्रतिमा है, कैसा सुंदर है जिन रूप |
जिसे देखते सहज दीखता, सबसे सुंदर आत्मस्वरुप ||(1)
नग्न दिगम्बर नहीं आडम्बर, स्वाभाविक है शांत स्वरुप |
नहीं आयुध नहीं वस्त्राभूषण, नहीं संग नारी दुःख रूप ||(2)
बिन श्रृंगार सहज ही सोहे, त्रिभुवन माहि अतिशय रूप |
कायोत्सर्ग दशा अविकारी, नासा दृष्टि आनंदरूप ||(3)
अर्हत प्रभु की याद दिलाती, दर्शाती अपना प्रभु रूप |
बिन बोले ही प्रगट कर रही, मुक्तिमार्ग अक्षय सुखरूप ||(4)
जिसे देखते सहज नशावे, भव-भव के दुष्कर्म विरूप |
भावों में निर्मलता आवे, मानो हुए स्वयं जिनरूप ||(5)
महाभाग्य से दर्शन पाया, पाया भेद-विज्ञान अनूप |
चरणों में हम शीश नवावेें, परिणति होवे साम्यस्वरुप ||(6)
Artist - ब्र.श्री रविन्द्र जी आत्मन
जिसे देखते सहज दीखता, सबसे सुंदर आत्मस्वरुप ||(1)
नग्न दिगम्बर नहीं आडम्बर, स्वाभाविक है शांत स्वरुप |
नहीं आयुध नहीं वस्त्राभूषण, नहीं संग नारी दुःख रूप ||(2)
बिन श्रृंगार सहज ही सोहे, त्रिभुवन माहि अतिशय रूप |
कायोत्सर्ग दशा अविकारी, नासा दृष्टि आनंदरूप ||(3)
अर्हत प्रभु की याद दिलाती, दर्शाती अपना प्रभु रूप |
बिन बोले ही प्रगट कर रही, मुक्तिमार्ग अक्षय सुखरूप ||(4)
जिसे देखते सहज नशावे, भव-भव के दुष्कर्म विरूप |
भावों में निर्मलता आवे, मानो हुए स्वयं जिनरूप ||(5)
महाभाग्य से दर्शन पाया, पाया भेद-विज्ञान अनूप |
चरणों में हम शीश नवावेें, परिणति होवे साम्यस्वरुप ||(6)
Artist - ब्र.श्री रविन्द्र जी आत्मन
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