जन-जन को अचरज आयो, नेमी ने रथ मुडवायो;
नेमिकुंवर के परिणामों में, उपशम रस उमड़ायो उमड़ायो॥
नेमिकुंवर दूल्हा बन आये, छप्पन कोटि बराती लाये;
ब्याह को रङ्ग उमड़ायो… उमड़ायो। जन-जन… ॥१॥
पशुओं के क्रन्दन को सुनकर, जग की स्वारथ वृत्ति देखकर;
ब्याह का राग नशायो… नशायो। जन जन… ॥२ ।।
समुद्रविजय अचरज में भारी, पुत्र विवाह की है तैयारी;
रङ्ग में भङ्ग कैसे आयो… जी आयो। जन-जन… ॥३॥
राजुल को बाबुल समझाये, बेटी दूजा ब्याह रचावें;
राजुल को नेमी मन भायो… भायो। जन-जन… ४॥
शोक बहुत राजुल के मन में, किन्तु लगाया चित्त संयम में;
दीक्षा में चित्त रमायो… रमायो। जन-जन… ॥५॥
नेमिकुंवर के परिणामों में, उपशम रस उमड़ायो उमड़ायो॥
नेमिकुंवर दूल्हा बन आये, छप्पन कोटि बराती लाये;
ब्याह को रङ्ग उमड़ायो… उमड़ायो। जन-जन… ॥१॥
पशुओं के क्रन्दन को सुनकर, जग की स्वारथ वृत्ति देखकर;
ब्याह का राग नशायो… नशायो। जन जन… ॥२ ।।
समुद्रविजय अचरज में भारी, पुत्र विवाह की है तैयारी;
रङ्ग में भङ्ग कैसे आयो… जी आयो। जन-जन… ॥३॥
राजुल को बाबुल समझाये, बेटी दूजा ब्याह रचावें;
राजुल को नेमी मन भायो… भायो। जन-जन… ४॥
शोक बहुत राजुल के मन में, किन्तु लगाया चित्त संयम में;
दीक्षा में चित्त रमायो… रमायो। जन-जन… ॥५॥
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