सीमंधर मुख से फुलवा खिरे, जाकी कुन्दकुन्द गुंथे माल रे - Jain Bhajan

सीमंधर मुख से फुलवा खिरे, जाकी कुन्दकुन्द गुंथे माल रे |जिनजी की वाणी भली रे ॥


वाणी प्रभू मन लागे भली, जिसमें सार समय शिरताज रे ॥टेक॥


गूंथा पाहुड अरु गूंथा पंचास्ति, गूंथा जो प्रवचनसार रे ॥टेक॥


गुंथा नियमसार, गुंथा रयणसार, गुंथा समय का सार रे ॥टेक॥


स्याद्वादरूपी सुगन्धी भरा जो, जिनजी का ओंकारनाद रे ॥टेक॥


वन्दू जिनेश्वर, वन्दू मैं कुन्दकुन्द, वन्दू यह ओंकार नाद रे ॥टेक॥


हृदय रहो, मेरे भावे रहो, मेरे ध्यान रहो जिनबैन रे ॥टेक॥


जिनेश्वर देव की वाणी की गूंज, गूंजती रहो दिन रात रे ॥टेक॥



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